March 28, 2024
क्रोध सर्वकाल ठीक नहीं: बापू

क्रोध सर्वकाल ठीक नहीं : बापू

संत पूज्य मुरारी बापू की अमृतवाणी से वह रही ज्ञान की गंगा

ललितपुर। जनपद ललितपुर नगर के चौकाबाग स्थित रामकथा पंडाल में पूज्य संत मुरारी बापू द्वारा श्रीराम कथा की अमृत वर्षा हो रही है। भक्तगण पूज्य संत मुरारी बापू के मुख्य से निकल रही अमृतमयी दिव्य कथा को सुनकर धन्य हो रहे हैं। मुरारी बापू ने कहा कि कथा तो अमृत है जो हमें जीवन जीने का सूत्र प्रदान करती है। जीवन में ऐसा वैसा कोई पीने वाला व्यसन करते हो तो इस कथा रस के बाद उसे छोड़ देना। यह रस सब प्रकार से कल्याणकारी है। उन्होंने कहा कि जो आप शाम को पी रहे हो, वह नाश करने वाला है। अविनाशी की कथा सुनकर जीवन व्यसन मुक्त होना चाहिए। क्रोध सर्वकाल ठीक नहीं।

राम रस पीने का आनंद अदभुत है। भजन करने का न कोई संविधान है और न ही कोई सिद्धांत है। भजन तो साधक की अनुभूति है। निरंतर प्रभु नाम का स्मरण भजन है। प्रभु के रूप में रूचि ही भजन है। भजनानंदी के लिए चारों पुरूषार्थ अर्थ, धर्म, काम एवं मोक्ष भजन है। साधक के लिए तो प्रभु प्रसन्नता के लिए प्रेमपूर्वक किया हर कार्य भजन है। कामनारहित प्रेम ही भजन है। मानस में भगवान शिव महते हैं। भजन सत्य है जबकि आदि शंकराचार्य भगवान कहते हैं कि भजन ब्रह्म है, भजन प्रेम है लेकिन प्रेम रजोगुण, तपोगुण आदि गुणों से रहित रहे। नारद जी के अनुसार, जो निरंतर बढ़े वही प्रेम है, यदि घट गया तो प्रेम नहीं है। भजन की विधा व्यापक है। क्रोध सर्वकाल ठीक नहीं।

भजन जीवन को आनंदमय तो बनाता ही है, यह उस लोक में भी कल्याण करता है। कथा प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए बापू ने कहा कि अयोध्या में चारों कुमारों के जन्म से ही उत्सव एवं मंगल होने लगे। राम जन्म पर अयोध्या में एक माह का दिन हो गया, यह कर्म ब्रह्मा व सूर्य ही जान सके। नामकरण संस्कार के लिए गुरू वशिष्ठ को बुलाया गया। गुरू से नामकरण कराना हमारी पुरानी परंपरा है। गुरू वशिष्ठ ने कौशल्या नंदन, आनंद का सिंधु, सुख की राशि का नाम रखा, जिससे संसार को आराम एवं विश्राम प्राप्त होगा। इसी प्रकार भैया भरत, भैया शत्रुघ्न एवं लक्ष्मण महाराज के नाम रखे।

बापू ने कहा कि राम के तीनों भाइयों का जो नामकरण है, उसकी आध्यात्मिक विवेचन यह है कि राम का स्मरण करने वाला सबका पोषण करें। सबका पोषण करने वाले भरत जी महाराज है। राम नाम का स्मरण करने वाला किसी से शत्रुता न रखें। राम नाम जपे तो किसी का शोषण न करे। राम नाम जपें और जीवन में दूसरे का सहयोग यथा सामर्थ्य करें। भगवान की दिव्य बाल लीलाओं का बापू ने मनोहारी वर्णन किया है, वे कहते हैं कि प्रभु राम ने विभिन्न प्रकार की बाल लीलाएं अपने भक्तों को सुख प्रदान करने के लिए की। गुरू विश्वामित्र के आश्रम जाकर अल्पकाल में ही विधाएं ग्रहण की। विद्या के बाद उस विद्या को जीवन में उतारने का काम प्रभु श्रीराम ने अपने चरित्र में दर्शाया है, जो कि आज भी आदर्श है।

कथा क्रम में महर्षि विश्वामित्र भगवान राम लक्ष्मण को लाते अयोध्या आते हैं। पहले तो महाराज दशरथ संकोच करते हैं किन्तु गुरू वशिष्ठ की आज्ञा से महाराज दशरथ, राम, लक्ष्मण को विश्वामित्र के लिए सौंपते हैं। इसके बाद महर्षि के संग पद यात्रा पर निकले। एक ही बाण में प्रभु ने ताडका का वध कर उसे निज धाम प्रदान किया। विश्वामित्र ब्रह्म जानकर अनेक अस्त्र-शस्त्र प्रदान करते हैं। दूसरे दिवस यज्ञ का आरंभ होते ही मारीच, सुबाहु आदि राक्षस आते हैं। प्रभु ने बिना फर के बाण से उन्हें सतयोजन दूर फेंक देते हैं, सुबाहु का वध करते हैं। भैया लक्ष्मण सभी राक्षसों का वध कर मुनियों को निर्भय करते हैं।

धनुष यज्ञ हेतु प्रभु राम, लक्ष्मण महर्षि के साथ जनकपुर के लिए चले। मार्ग में आश्रम में एक पत्थर शिला देखी, जिसकी कथा का वृतांत महर्षि विश्वामित्र ने दोनों भाईयों को सुनाया। गोस्वामी जी की लेखनी के अनुसार, गौतम नारी श्राप बस अहिल्या पत्थर देख धारण कर पड़ी हैं। आपकी चरण रज की कृपा चाहती हैं। भगवान ने कृपा से अहिल्या का उद्धार होता है। गंगा स्नान उपरांत महर्षि विश्वामित्र सहित दोनों भाई जनकपुर पहुंचते हैं, वहां राजा जनक दोनों भाईयों की छवि देखकर परमानंद में खो गए। मिथला के सुंदर सदन में राम-लक्ष्मण महर्षि विश्वामित्र को ठहराया गया।

सुख सच्ची सम्पत्ति

बापू ने कहा कि सच्चा सुख एवं सच्ची संपत्ति वहीं है, जो समय पर समाज के काम आ सके। प्रभु नाम का स्मरण दिन-रात इस तरह रहे जैसे हम उसी में समाहित है।

व्यासपीठ तो जीवन जीने के सूत्र

बापू ने कहा कि व्यासपीठ तो जीवन जीने के सूत्र को देती है। ग्रहण करना आपके ऊपर है, श्रेष्ठ लगे तो ग्रहण करे और इसे जीवन में उतारे। कथा के श्रवण उपरांत चिंतन-मनन करना चाहिए।

माता-पिता गुरू का सम्मान ही संस्कार

बापू ने कहा कि अपने माता-पिता, गुरू एवं अपने से बड़ों का सम्मान करना चाहिए। प्रणाम करने से आयु, विद्या, यश व बल बढ़ता है।

हमने बचपन कैद कर लिया

बापू ने कहा कि बच्चों को पाश्चात्य संस्कृति परतंत्र बना रही है। असल में, हमने बचपन कैद कर लिया है। माता-पिता की मानसिकता में बालकों के लिए पढना ही रह गया है। माता-पिता बच्चों को खेलने-कूदने की स्वतंत्रता दें, ताकि उनका विकास हो सके।

क्रोध सर्वकाल ठीक नहीं

बापू ने कहा कि चरित्रवान होने के लिए छह समय पर क्रोध नहीं करना चाहिए। क्रोध सर्वकाल ठीक नहीं है लेकिन छह प्रमुख समयों पर क्रोध न करे। इनमें भजन करते समय, भोजन करते समय, सुबह उठते ही, रात्रि शयन हेतु जाते समय, घर से बाहर निकलते समय, घर से वापस लौटते समय क्रोध नहीं करना चाहिए।


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