(ललितपुर)। Dayanand Saraswati Yoga Institute – महर्षि दयानंद सरस्वती योग संस्थान आर्य समाज महरोनी के तत्वाधान में वैदिक धर्म के सही मर्म से युवा पीढ़ी को परिचित कराने के उद्देश्य से संयोजक आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य द्वारा पिछले एक वर्ष से आयोजित व्याखान माला के क्रम में यज्ञ और वृष्टि विज्ञान विषय पर वैदिक विद्वान प्रो. डॉ. व्यास नन्दन शास्त्री बिहार ने कहा कि देश मे अनावृष्टि अति वृष्टि और असामयिक वृष्टि के कारण देश की जनता सूखा, बाढ़ और अकाल से अनेक काष्ट भोगती है और धन जन संपदा की हानि होती हैं।
Dayanand Saraswati Yoga Institute – समग्र रूप में वृष्टि विज्ञान कहलाता
Dayanand Saraswati Yoga Institute – दयानंद सरस्वती योग संस्थान, जिससे निजात पाने के लिए सरकारी और गैर सरकारी उपाय किए जाते हैं, परंतु अब तक जल का स्थाई हल संभव नही हो सका हैं इसके लिए प्रो शास्त्री ने कहा कि इसका स्थाई समाधान वृष्टि कारक और वृष्टि रोधक दोनो रूपों में यज्ञ के विधान वेदों में आए हैं जिनको कामनीय यज्ञ के अंतर्गत वृष्टि यज्ञ पर्जन्य यष्टि आदि नाम से समग्र रूप में वृष्टि विज्ञान कहलाता हैं।
धार्मिक ग्रंथों में यज्ञ से वर्षा कराने के पर्याप्त प्रमाण मिलते हैं
Dayanand Saraswati Yoga Institute – दयानंद सरस्वती योग संस्थान, यजुर्वेद के 22-22 में स्पष्ट कथन आया हैं, निकामे निकामें नरू पर्जन्यो वर्सते अर्थात हम जब जब चाहें तब तब वर्षा हो, गीता 3-14 में यज्ञात भवति पर्जन्या अर्थात यज्ञ से वर्षा होती हैं। वेदों व अन्य धार्मिक ग्रंथों में यज्ञ से वर्षा कराने के पर्याप्त प्रमाण मिलते हैं। महर्षि मनु ने अपनी मनु स्मृति में कहा हैं की अग्नि में पड़ी यज्ञ की आहुति सूर्य तक पहुंचती हैं सूर्य से वर्षा होती हैं, वर्षा से अन्न होता हैं और अन्न से सारी प्रजाएं पालित पोषित होती हैं, इसलिए यज्ञ को प्रजापति कहा गया हैं।
मित्र और वरुण को क्रमशः प्राण और उदान कहा गया
दयानंद सरस्वती योग संस्थान, उन्होंने यजुर्वेद और अथर्ववेद के अनेक मंत्र प्रमाणों से सिद्ध किया कि वेद में यज्ञ से वर्षा होती हैं। मंत्रों में मेघ, विद्युत, अभ्र तथा अनुकूल वायु, बहने और निर्माण की विशेष चर्चा आई हैं। यजुर्वेद 2-16 के अनुसार मित्र और वरुण के मिलने से जल बनता हैं और वर्षा होने से हमारी रक्षा होती हैं, मित्र और वरुण को क्रमशः प्राण और उदान कहा गया हैं,मित्र को ऑक्सीजन और वरुण को हाइड्रोजन कहा गया हैं, दोनो के मिश्रण से जल निर्माण की बात विज्ञान सिद्ध हैं।
परतों में वायु का घनत्व बहुत कम हैं
वर्षा का संबंध पृथ्वी के पहली परत से हैं जिसको वैज्ञानिकों के अनुसार टोपो स्थेयर कहते हैं। इसकी आठ से तेरह किलोमीटर तक परत के रूप में स्थित हैं। वर्षा का संबंध इसी परत से है क्योंकि इससे ऊपर की परतों में वायु का घनत्व बहुत कम हैं। वर्षा कराने के लिए तीन प्रधान अंगो की आवश्यकता होती हैं। संकल्प, मंत्र और आहुति। यजमान और याज्ञिकों को वृति बनकर श्रद्धा भक्ति से युक्त होना चाहिए।
वृष्टि कारक मंत्र के रूप में अथर्ववेद का पर्जन्य सूक्त 4-15 का उच्चारण करना चाहिए। इस यज्ञ में घी और सामग्री पर्याप्त मात्रा के देनी चाहिए। एक हजार गरी गोला को घी मेवा, खीर, मोहन भोग से भरकर आहुति दी जाएं तो उसी दिन वर्षा आरंभ हो जाती हैं। वृष्टि कारक यज्ञ में करीर की समिधा, अधिक से अधिक देनी चाहिए। आम, पीपल, प्लास, गूलर, बेल की समिधा दी जा सकती हैं।
मेघ साफ हो जाते है और सूर्य खिल जाता हैं
कच्चे बेल को तोड़कर भी डाला जा सकता हैं, भांत की आहुति भी दी जाती हैं। यज्ञ शाला का मुख खुला रखा जाता हैं, जिससे आहुति का संबंध अंतरिक्ष से हो सके और उनका मुख आकाश की ओर होना चाहिए। सफल वृष्टि यज्ञ के अनेक जगहों की चर्चा की। अनावृष्ठि यज्ञ की सामग्री में मंत्र और आहुति बदलनी पड़ती हैं। वृष्टि रोधक के रूप में सरसों की खल्ली, सरसों तेल वा तिल की सामग्री अधिक दी जाती हैं। जिससे मेघ साफ हो जाते है और सूर्य खिल जाता हैं।
सारस्वत अतिथि आचार्य आनंद पुरुषार्थी नर्मदा पुरम ने भी वेदों में वृष्टि यज्ञ की महिमा का बखान किया। व्याख्यान माला में अवीनीश मैत्री वेदकला संवर्धन परमार्थ न्यास राजस्थान, सुमन लता सेन शिक्षिका, आराधना सिंह शिक्षिका, रामावतार लोधी प्रबंधक दरौनी, चंद्रकांता आर्या, अनिल नरूला, प्रो. डॉ. वेदप्रकाश शर्मा बरेली, विमलेश सिंह शिक्षक, चंद्रभान सेन राज्यपाल पुरुष्कृत शिक्षक, रामकुमार सेन अजान, अवधेश प्रताप सिंह बैंस, संचालन संयोजक आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य एवं आभार मुनि पुरुषोत्तम वानप्रस्थ ने जताया।
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