वैवाहिक विवादों से न हो परेशान-डा. सुनील कुमार
ललितपुर। जनपद का इकलौता प्राचीन बटुक भैरव बाबा मन्दिर में भैरव अष्ठमी का आयोजन विधिवत पूजन कर किया गया। इस अवसर पर विधिक सेवा प्राधिकरण ने वैधिक साक्षारता शिविर का आयोजन सिविल लाइन स्थित बटुक भैरव बाबा मन्दिर पर धार्मिक अनुष्ठान संपन्न हुआ। तदोपरांत विधिक सेवा प्राधिकरण के द्वारा वैधिक साक्षारता शिविर भी आयोजित किया गया जिसकी अध्यक्षता सींनियर डिवीजन सिविल जज डा. सुनील कुमार सिंह ने कहा कि वैवाहिक विवादों से न हो परेशान, जिला वैधिक सेवा प्राधिकरण से कराए सरल समाधान, उन्होंने बताया कि महिलाओं बच्चों, गरीबों व कमजोर वर्ग के व्यक्तिओ को निःशुल्क विधिक सहायता व सलाह का अधिकार विधिक सेवा प्राधिकरण वैधिक साक्षारता शिविर में बोलने का अधिकार दिया है। डॉ सुनील कुमार सिंह सींनियर डिवीजन सिविल जज ने बटुक भैरव बाबा के मंदिर में मथ्था टेककर पूजा अर्चना कर सीनियर डिविजन द्वारा अवगत कराया गया की जमानतीय अपराध में अभियुक्तों को जमानत पाने का विधिक अधिकार प्राप्त होता है। जमानत पुलिस थाना या न्यायालय से कराई जा सकती है। बिना जमानतीय अपराध में मैजिस्ट्रेट न्यायालय को यह अधिकार होता है की जमानत स्वीकार करें अथवा अस्वीकार करे। जो अपराध मृत्युदंड या आजीवन कारावास द्वारा दंडनीय होता है उसमें मैजिस्ट्रेट द्वारा तब ही जमानत दिया जा सकता है जबकि यह सिद्ध होने के कारण हों कि व्यक्ति दोषी नहीं है।
काल भैरव जो माने जाते हैं भगवान शिव के ही स्वरूप
कालभैरव को भगवान शिव का रौद्र रूप माना जाता है। मान्यता के अनुसार काल भैरव की पूजा से रोगों और दुखों से निजात मिल जाता है। इसके अलावा काल भैरव की पूजा करने से मृत्यु का भय दूर होता है और कष्टों से मुक्ति मिलती है यह बात वरिष्ठ अधिवक्ता के.के. बंसल ने कही जनपद न्यायाधीश, अध्यक्ष जिला विधिक सेवा प्राधिकरण चन्द्रोदय कुमार के निर्देशानुसार, डा. सुनील कुमार सिंह, डॉक्टर सुनील कुमार सिंह सिविल जज सीनियर डिवीजन प्रभारी सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण ललितपुर की अध्यक्षता में 17.11.2021 को जिला कारागार ललितपुर, में जेल में निरूद्ध बन्दियों को प्रदत्त सुविधा एवं अधिकार पर विधिक साक्षरता शिविर का आयोजन किया गया। हिन्दी दैनिक सत्ता सरकार के प्रधान संपादक संजय ताम्रकार द्वारा अवगत कराया गया की जमानतीय अपराध में अभियुक्तों को जमानत पाने का विधिक अधिकार प्राप्त होता है। जमानत पुलिस थाना या न्यायालय से कराई जा सकती है। बिना जमानतीय अपराध में मैजिस्ट्रेट न्यायालय को यह अधिकार होता है की जमानत स्वीकार करें अथवा अस्वीकार करे। जो अपराध मृत्युदंड या आजीवन कारावास द्वारा दंडनीय होता है उसमें मैजिस्ट्रेट द्वारा तब ही जमानत दिया जा सकता है जबकि यह सिद्ध होने के कारण हों कि व्यक्ति दोषी नहीं है।