Maharishi Dayanand Saraswati, वैदिक संस्कृति में त्रिक व्यवस्था अति महत्वपूर्ण व सर्वहितकारी

महरौनी (ललितपुर)। Maharishi Dayanand Saraswati – महर्षि दयानंद सरस्वती योग संस्थान आर्क समाज महरौनी के तत्वावधान में वैदिक धर्म के मर्म से जन मानस में प्रचारित-प्रसारित करने के लिए आर्य जगत् के प्रख्यात वैदिक विद्वान प्रो. डा. व्यास नन्दन शास्त्री वैदिक ने बेविनार व्याख्यानमाला में वैदिक संस्कृति में त्रिक् व्यवस्था की महत्ता विषय पर अपने प्रवचन में करते हुए कहा कि वैदिक संस्कृति विश्ववारा संस्कृति है जिसका आधार वेद है।

Maharishi Dayanand Saraswati – वैदिक धर्म व संस्कृति में इसे हर प्रकार से शुभ माना गया है

Maharishi Dayanand Saraswati – वेदों में त्रिक् यानी तीन-तीन तत्त्वों की अनेक प्रकार की मान्यताएं सुरक्षित हैं। खास कर लोक में तीन को अशुभ माना गया है परन्तू वैदिक धर्म व संस्कृति में इसे हर प्रकार से शुभ माना गया है। डा. शास्त्री ने अपने कथन की पुष्टि अथर्ववेद 1-1-1 का मन्त्र प्रमाण दिया कि तीन तीन के अनेक तत्त्वों से हमारी सृष्टि भरी पड़ी है। जैसे संसार में अनादि तत्व हैं ईश्वर, जीव और प्रकृति। प्रकृति में तीन गुण-शत, रज और तम। परमेश्वर के मुख्य तीन कार्य सृष्टि उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय।

सम्पूर्ण सृष्टि तीन कालों से आबद्ध है

तीनों कार्यों के कारण परमात्मा को ब्रह्मा, विष्णु और महेश कहा जाता है। सम्पूर्ण सृष्टि तीन कालों से आबद्ध है। भूत, वर्तमान और भविष्य परमात्मा के मुख्य नाम ओ३म् में तीन अक्षर अ,उ,म्। वैदिक संस्कृति का प्राण यज्ञ है। यज्ञ शब्द यज् धातु से बना है जिसके तीन अर्थ हैं। देवपूजा, संगतिकरण और दान। यज्ञ की तीन मेखला तीन लोक के प्रतीक भूरू, भुवरू और स्वरू क्रमशः पृथ्वीलोक, अन्तरिक्ष लोक और द्युलोक की प्रतीक हैं। यज्ञ की आहुति तीनों लोकों को शुद्ध और पवित्र करती हैं।

यज्ञ के तीन चरण प्रयाज, याज और अनुयाज

Maharishi Dayanand Saraswati – यज्ञ के तीन प्रकार हैं। नित्य, नैमित्तिक और काम्य। यज्ञ के तीन प्रधान अंग संकप मंत्र और आहुति। यज्ञ के तीन प्रधान तत्व आज्य( घृत), इध्म (समिधा) और हविष्। यज्ञ के तीन चरण प्रयाज, याज और अनुयाज। इसी प्रकार स्वास्थ्य के तीन आधार आहार, निद्रा और ब्रह्मचर्य। तीन प्रकार के भोजन हितभुक्, ऋत भुक् और मित भुक्। आयुर्वेद में तीन व्याधि तत्व कफ, पित्त और वात। तीनों को बराबर रखकर स्वस्थ होने हेतु यज्ञ में तीन आचमन का विधान आया है।

विवाह संस्कार में भी विष्टर पाद्य, अर्घ्य, आदि स्वागत किया में तीन तीन बार एक-एक पदार्थ के लिए विधान आया है। वैदिक मंत्रों में भी अर्थ ज्ञान के लिए ऋषि, देवता और छन्द। तीन गुरु हैं माता, पिता और आचार्य। यज्ञोपवीत के तीन लड़े तीन ऋणों के प्रतीक देव ऋण, पितृऋण और ऋषि ऋण। तीन सत्कार के योग्य देव, ऋषि और पितर इत्यादि अनेक प्रमाणों को उद्धृत कर श्रोताओं को लाभान्वित किया। उन्होंने व्यव्हार जगत् में वक्ता, श्रोता और विषय तथा किसी भी दूकानदार के लिए क्रेता,विक्रेता और सामान की आवश्यकता होती है।

इस प्रकार तीन के बिना हमारा वैदि और लौकिक कार्य नहीं चल सकता। व्याख्यान माला में वैदिक विदुषी डा. निष्ठा विद्यालंकार, अनिल नरुला, डा. वेद प्रकाश शर्मा, मान्यवर पाहुजा आदि देश विदेश के कोने -कोने से विद्वान गण तथा माता-बहनों ने भी अपने विचार रखे। कार्यक्रम के संयोजन व संचालन आर्यरत्न शिक्षक लखन लाल आर्य ने किया।


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