Peethadheeshwar Rajendradas in Lalitpur, रामचरित मानस जीवन जीने का ग्रंथ

(ललितपुर)। Peethadheeshwar Rajendradas in Lalitpur – तुवन मंदिर प्रांगण में साकेतवासी महामंडलेश्वर श्री बालकृष्ण दास जी महाराज की पुण्य स्मृति में आयोजित महामहोत्सव के अंतर्गत द्वितीय दिवस रामकथा में व्यासपीठ पर आसीन जगदगुरू द्वाराचार्य मलूक पीठाधीश्वर डा. राजेंद्र दास देवाचार्य महाराज ने कहा कि रामचरित मानस जीवन जीने का ग्रंथ है।

उन्होंने मानस के द्वितीय सोपान अयोध्याकांड के मंगलाचरण की व्याख्या करते हुए महाराज ने कहा कि इस सोपान में प्रेममूर्ति भरत महाराज का अद्वितीय चरित्र का वर्णन है, इसे लिखने से पूर्व गोस्वामी जी मंगलाचरण में भगवान शिव की वंदना करते हैं क्योंकि भूतभावन भगवान शिव वैष्णव शिरोमणि है।

द्वादस महाभागवतों में एक महाभागवत है। भक्ति के सभी प्रकार एवं पांचों रस उनमें समाहित हैं। भक्ति के पांच रसों के आचार्य भगवान शिव हैं। द्वितीय शखोक में प्रभु राम की शोभा सहित संपूर्ण रामचरित का दर्शन होता है। मंगलाचरण के अंतिम भाग में गोस्वामी जी गुरूचरण रेणु की महिमा बताते हुए मन के दर्पण की मलिनता दूर करने का साधन बताते हुए कहते हैं कि मन के शुद्ध होने पर ही युगल चरणों का पर्दापण ह्दय में होता है।

Peethadheeshwar Rajendradas in Lalitpur – सभी साधनों का सार है कि साधक निरंतर नाम सुमिरन करें नाम जापक के मुख में ही संपूर्ण तीर्थों का वास होता है। इस कलिकाल में नाम जप नाम सुमिरन ही भव पार करा सकता है। अर्हनिश जिव्हा से श्रीराम निकलना चाहिए। धर्म सभा में महाराज ने कहा कि सियाराम के पद में प्रेम ही भरत भैया का मूल ध्येय रहा है।

गोस्वामी जी कहते हैं कि भरत भैया के निश्चल प्रेम को जो भी सादर सुनता है, उसे अवश्य ही इस भव रस से निवृत्ति प्राप्त होती है। प्रेममूर्ति भरत के चरित्र श्रवण से सीताराम के चरणों में भी अवश्य प्रीति होती है। महंत गंगादास महाराज ने कहा कि कथा में पधारे संतों के दर्शन से पुण्य फल होता है।

Peethadheeshwar Rajendradas in Lalitpur – मंचासीन महंतों में महंत रामबालकदास, महंत श्यामसुंदरदस, सच्चिदानंद दास, राघवेंद्र दास, शिवराम दास, अशोक नारायण दास, रामलखन दास आदि विराजमान रहे। कथा का श्रवण करने वालों में प्रमुख रूप से सदर विधायक रामरतन कुशवाहा, प्रदीप चौबे, डा. ओमप्रकाश शास्त्री, आदित्यनारायण बबेले, अजय तिवारी नीलू, प्रेस क्लब अध्यक्ष राजीव बबेले, रामेश्वर सड़ैया, वीरेंद्र सिंह वीके सरदार, नरेश शेखावत, धर्मेंद्र रावत, गिरीश पाठक सोनू,

विवेक सड़ैया, भाजपा जिलाध्यक्ष राजकुमार जैन, संजय डयोडिया, सुभाष जायसवाल, विलास पटैरिया, उदित रावत, प्रदीप खैरा, प्रदीप गुप्ता, शरद खैरा, जिला पंचायत अध्यक्ष कैलाश निरंजन, पालिकाध्यक्ष रजनी साहू, हरीराम निरंजन, चंद्रविनोद हुंडैत, सुधांशु शेखर हुंडैत, विभाकांत हुंडैत, ह्देश हुंडैत, गोपी डोडवानी, कपिल डोडवानी, रमाकांत तिवारी, गंधर्व सिंह लोधी, सौरभ लोधी, अजय पटैरिया, अशोक रावत, बब्बूराजा, अजय नायक,

मनीष अग्रवाल, हाकिम सिंह, आदित्य पुरोहित, बद्रीप्रसाद पाठक, मुकुट बिहारी उपाध्याय, राजीव सुड़ेले, सुबोध गोस्वामी, डा. राजकुमार जैन, रामकिशोर द्विवेदी, उमाशंकर विदुआ, विष्णु अग्रवाल, गोविंद नारायण रावत, दुर्गाप्रसाद पाठक, कमलापति रिछारिया, देवेंद्र चतुर्वेदी, दिनेश गोस्वामी, चंद्रशेखर पंथ, डा. दीपक चौबे, भगवत नारायण वाजपेई, ओपी रिछारिया, वीरेंद्र शेखावत, अंतिम जैन, राहुल शुक्ला, सुनील सैनी, राजेश लिटौरिया, राजेश दुबे, आशीष रावत,

प्रशांत शुक्ला, अजय जैन साइकिल, भरत रिछारिया, मनीष दुबे, विक्रांत तोमर, कमलेश शास्त्री, राहुल खिरिया, सतेंद्र सिसौदिया, डा प्रबल सक्सेना, नेपाल यादव, बृजेश चतुर्वेदी, कल्पनीत लोधी, गोलू चौबे, रामकुमार सोनी, अजय जैन साईकिल, बबलू पाठक, वीके तिवारी, शंकरदयाल भौड़ेले, मथुरा प्रसाद सोनी, सज्जन शर्मा,चंदे साहू, प्रताप नारायण गोस्वामी, राहुल चौबे,

दीपक रावत, वीरेंद्र पुरोहित, नीरज मिश्रा, राजेश लिटौरिया, गौरव गौतम, रविकांत तिवारी, पार्थ चौबे, नीरज शर्मा, देवेंद्र गुरू, राजेंद्र वाजपेई, बाबी राजा, भोलू रावत, श्रीकांत करौलिया, रामकुमार सोनी, दिवाकर शर्मा, आलोक श्रीवास्तव, जयशंकर प्रसाद द्विवेदी, भूपेंद्र तिवारी, चंद्रशेखर दुबे, मानू शर्मा, अंकुर रावत, शुभम कौशिक, नत्थू राठौर आदि हजारों श्रद्धालु उपस्थित रहे।

गोस्वामी जी के मानस में उल्ललिखित भरत चरित्र का श्रवण मनन अवश्य करना चाहिए। प्रेममूर्ति भैया भरत भक्त हैं। भक्त का युयश सर्वोपरि होता है। भक्त चरित्र का गायन, श्रवण ही प्रभु को रिझाने का उपक्रम है। प्रभु अपने भक्तों के चरित्रों को सुनकर आनंदित होते हैं। प्रभु राम की कृपा पाने का सरल मार्ग भक्ति है।

सीताराम जी के विवाह उपरांत अयोध्या पधारने के बाद अयोध्या में चहुं दिस ऋद्धि-सिद्धि संपत्ति की वर्षा होती है। चारों बहुओं की रानियां स्नेह दुलार प्रदान करती है और फिर महाराज प्रभु राम को युवराज पद देने का निर्णय करते हैं। गुरूदेव वशिष्ठ के पास इस हेतु जाते हैं। जहां वशिष्ठ महाराज बताते हैं कि वही दिन शुभ है, वह घड़ी शुभ है, जब राम जी युवराज हो।


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