ललितपुर। भगवान पाप, पाखंड, रजोगुण, तमोगुण से हमेशा दूर रखते हैं। श्रीहरि का उन्हीं लोगों के हृदय में वास होता है, जो सत्कर्म करते हैं। अनैतिक कमाई का लाभ तो कोई भी उठा सकता है। परन्तु तुम्हारे अनैतिक कर्मों को तुम्हें ही भोगना होगा। इसलिए कर्म करनें में सावधानी बरतें। गांधीनगर नई बस्ती ग्राम सभा के कुए के समीप चल रही श्रीमद्भागवत कथा में तीसरे दिन व्यास पीठ पं सौरभ कृष्ण शास्त्री महाराज ने कथा सुनाते हुए यह बात कही। कथा में तीसरे दिन उन्होंने शिव विवाह, धु्रव चरित्र, बामन अवतार आदि की कथा का संगीतमय वर्णन किया। बताया कि किस तरह कश्यप ऋषि व अदिति के पुत्र के रूप में जन्म लेकर किस तरह श्रीनारायण ने राजा बलि से भिक्षा में तीन पग जमीन मांगी। और ढाई पग में ही तीनों लोकों को नाप लिया। शिव व सति प्रसंग की व्याख्या करते हुए बताया कि किस तरह शिव (पति की) आलोचना सुनने पर सति माता ने अपना शरीर यज्ञ कुण्ड में भस्म कर दिया। जब शिवजी ने सति की देह को लेकर भ्रमण किया तो नारायण के चक्र से सति माता के शरीर 51 स्थानों पर गिरा, जहां शक्ति पीठों की उत्पति हुई। जीवात्म का सच्चा सम्बंध सगे सम्बंधियों से नहीं बल्कि प्रभु से होना चाहिए। वह जीवन निरर्थक है जो मनुष्य जन्म में भी प्रभु की भक्ति न करे। कहा कि सती वही जो अपने पति का सम्मान करे। इसके साथ ही पतियों को अपनी पत्नी का भी सम्मान करना चाहिए, वेवजह घर में लडाई झगडा नही करना चाहिए। ज्यादा से ज्यादा अपना मन भगवान की भक्ति मे लगाना चाहिए। कथा वाचक पं सौरभ कृष्ण शास्त्री महाराज ने कहा कि यदि अपने गुरू, इष्ट के अपमान होने की आशंका हो तो उस स्थान पर जाना नहीं चाहिए। चाहे वह स्थान अपने जन्म दाता पिता का ही घर क्यों न हो। प्रसंगवश भागवत कथा के दौरान सती चरित्र के प्रसंग को सुनाते हुए भगवान शिव की बात को नहीं मानने पर सती के पिता के घर जाने से अपमानित होने के कारण स्वयं को अग्नि में स्वाह होना पड़ा था। भागवत कथा में उत्तानपाद के वंश में धु्रव चरित्र की कथा को सुनाते हुए समझाया कि ध्रुव की सौतेली मां सुरुचि के द्वारा अपमानित होने पर भी उसकी मां सुनीति ने धैर्य नहीं खोया। जिससे एक बहुत बड़ा संकट टल गया। परिवार को बचाए रखने के लिए धैर्य संयम की नितांत आवश्यकता रहती है। भक्त धु्रव द्वारा तपस्या कर श्रीहरि को प्रसन्न करने की कथा को सुनाते हुए बताया कि भक्ति के लिए कोई उम्र बाधा नहीं है। भक्ति को बचपन में ही करने की प्रेरणा देनी चाहिए, क्योंकि बचपन कच्चे मिट्टी की तरह होता है उसे जैसा चाहे वैसा पात्र बनाया जा सकता है। इस दौरान कथा परिक्षित लखन लाल रावत, श्रीमति कमला रावत, महावीर प्रसाद दीक्षित, रामाधार दुबे, मनमोहन दुबे, भरत रावत, श्रीमति उषा, आरती, अन्नपूर्णा, किरन, अनीता रावत, विमला, शांति, गीता देवी, शकुन्तला, प्रेमकुमारी, गंगादेवी, धर्म कुमार, सुनील पटैरिया, बलराम पचौरी, सूर्यप्रकाश रिछारिया, राकेश नामदेव, दीपक त्रिपाठी, रत्नेश दीक्षित, राममूर्ति तिवारी, पवन राजपूत, अक्षय बोहरे सहित अनेकों श्रद्वालु मौजद रहे।
