Shikshak Diwas 2025: आधुनिक शिक्षक एवं शिक्षा, बदलते समय की नई पहचान – डा. महेश कुमार झा प्राचार्य

Shikshak Diwas 2025: “गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥” भारतीय संस्कृति में शिक्षक का स्थान ईश्वर के समकक्ष माना गया है। शिक्षक ही वह दीपक है जो स्वयं जलकर दूसरों को मार्ग दिखाता है। शिक्षक दिवस केवल एक वार्षिक अवसर नहीं, बल्कि यह वह दिन है जब समाज अपने ज्ञानदाताओं और राष्ट्र निर्माताओं के प्रति आभार प्रकट करता है। 5 सितंबर को हम भारत के दूसरे राष्ट्रपति और महान दार्शनिक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को स्मरण करते हैं, जिन्होंने यह संदेश दिया कि शिक्षा का उद्देश्य केवल रोजगार पाना नहीं बल्कि जीवन को अर्थपूर्ण बनाना है। शिक्षक ही वह दीपक है जो स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाश देता है। आज के समय में जब विज्ञान, प्रौद्योगिकी और वैश्वीकरण ने हर क्षेत्र को बदल डाला है, शिक्षा और शिक्षक की भूमिका भी बदल गई है। अब शिक्षक केवल पाठ्यपुस्तक का व्याख्याता नहीं, बल्कि चरित्र निर्माता, नवाचारक और जीवन-दृष्टा है। इसलिए शिक्षक दिवस के अवसर पर “आधुनिक शिक्षक एवं शिक्षा” पर चिंतन विशेष प्रासंगिक है।

21वीं सदी की शिक्षा का स्वरूप पारंपरिक शिक्षा से बिल्कुल भिन्न है। पहले शिक्षा का लक्ष्य मुख्यतः पढ़ना-लिखना, ज्ञान अर्जन और सरकारी नौकरी पाना होता था। लेकिन आज यह लक्ष्य बहुआयामी हो गया है। नई शिक्षा नीति 2020 ने शिक्षा को लचीला, कौशल-केंद्रित और छात्र-हितैषी बनाने की दिशा में एक नई दृष्टि प्रदान की है। अब विद्यार्थी केवल किताबों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि ऑनलाइन शिक्षा, ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म, MOOCs, वर्चुअल लैब और स्मार्ट क्लासरूम जैसी सुविधाओं से जुड़ चुके हैं। यूजीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार 2024 तक भारत में 13 करोड़ से अधिक विद्यार्थी ऑनलाइन शिक्षा से लाभान्वित हो रहे थे। इसका अर्थ है कि अब ज्ञान का भंडार केवल शिक्षक तक सीमित नहीं, बल्कि हर विद्यार्थी की उंगलियों पर उपलब्ध है। इस परिस्थिति में शिक्षक की भूमिका और भी जटिल हो गई है. उसे अब केवल जानकारी देना पर्याप्त नहीं, बल्कि उस जानकारी को सही दिशा और अर्थ देना भी आवश्यक हो गया है। स्वामी विवेकानंद ने कहा था. “शिक्षा का अर्थ है, मनुष्य में पहले से विद्यमान पूर्णता का विकास करना।”

आधुनिक शिक्षक बहुआयामी व्यक्तित्व का धनी होना चाहिए। वह केवल अध्यापक नहीं, बल्कि एक मार्गदर्शक, काउंसलर, प्रेरक और जीवन-दृष्टि देने वाला व्यक्ति है। तकनीक के युग में उसे स्मार्ट बोर्ड, वर्चुअल क्लास, एआई टूल्स और डिजिटल संसाधनों का दक्ष उपयोग करना आना चाहिए। साथ ही उसे यह भी देखना होगा कि छात्र केवल तकनीकी दक्षता तक सीमित न रहें, बल्कि नैतिक मूल्यों, सहानुभूति और सामाजिक उत्तरदायित्व को भी समझें। शिक्षक को छात्रों में आलोचनात्मक चिंतन, प्रश्न पूछने की आदत, समस्या समाधान की क्षमता और नवाचार की प्रवृत्ति विकसित करनी होगी। यही कारण है कि आज का शिक्षक केवल ज्ञान का “संरक्षक” न होकर ज्ञान का “सक्रिय मार्गदर्शक” है। वह बच्चों को केवल परीक्षा उत्तीर्ण कराने तक सीमित नहीं रहता, बल्कि उन्हें जीवन की चुनौतियों का सामना करने योग्य बनाता है। डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का कथन है. “शिक्षक ही राष्ट्र के वास्तविक निर्माता हैं।”

आधुनिक शिक्षा का मूल आधार बहुआयामी और समग्र दृष्टिकोण है। यह शिक्षा केवल अकादमिक ज्ञान तक सीमित न होकर विद्यार्थियों के व्यक्तित्व, कौशल और जीवन मूल्यों को भी आकार देती है। आलोचनात्मक चिंतन, रचनात्मकता, संवाद क्षमता, टीमवर्क और नेतृत्व अब शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य बन चुके हैं। इसके साथ ही आधुनिक शिक्षा समावेशी भी है, जिसमें लैंगिक समानता, सामाजिक न्याय और दिव्यांग छात्रों की भागीदारी पर विशेष बल दिया जाता है। साथ ही यह शिक्षा वैश्विक नागरिकता की तैयारी कराती है, ताकि विद्यार्थी न केवल स्थानीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बना सकें। सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण भी आधुनिक शिक्षा के केंद्र में हैं, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ केवल कुशल पेशेवर ही नहीं, बल्कि संवेदनशील और जिम्मेदार नागरिक भी बनें। इस प्रकार आधुनिक शिक्षा वास्तव में एक सम्पूर्ण जीवन-दर्शन है। कन्फ्यूशियस ने कहा था. “यदि आप भविष्य के लिए योजना बना रहे हैं, तो बच्चों को शिक्षा दीजिए।

जहाँ आधुनिक शिक्षा और शिक्षक की भूमिकाएँ विस्तृत हुई हैं, वहीं उनके सामने अनेक चुनौतियाँ भी हैं। तकनीकी संसाधनों का तेज़ी से बदलना शिक्षकों को निरंतर अद्यतन रहने की मांग करता है। इंटरनेट पर उपलब्ध अपार जानकारी में सही और गलत को पहचानना विद्यार्थियों के लिए कठिन है, और इस दिशा में शिक्षक को मार्गदर्शन करना पड़ता है। शिक्षा का बाजारीकरण भी एक बड़ी चुनौती है, जहाँ गुणवत्ता और मूल्य के बजाय लाभ-हानि की गणना प्रमुख हो जाती है। विविध पृष्ठभूमियों से आने वाले छात्रों की आवश्यकताओं को समझना और उन्हें समान अवसर देना भी आसान नहीं है। साथ ही आज के विद्यार्थियों में मानसिक तनाव और प्रतिस्पर्धा का दबाव अधिक है, जिसके समाधान के लिए शिक्षक को काउंसलर और संवेदनशील मित्र की भूमिका भी निभानी पड़ती है। हालांकि, इन चुनौतियों के बीच शिक्षक को निरंतर सीखने, नए प्रयोग करने और शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने का अवसर मिलता है। यही अवसर भविष्य की शिक्षा व्यवस्था को और सशक्त बनाते हैं। महात्मा गांधी ने कहा था “सच्ची शिक्षा वह है जो व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाती है।

आधुनिक शिक्षक का लक्ष्य यही है। आधुनिक शिक्षक और आधुनिक शिक्षा एक-दूसरे के पूरक हैं। यदि शिक्षक समयानुकूल न बदले तो शिक्षा बेमानी हो जाएगी, और यदि शिक्षा का स्वरूप बदले बिना शिक्षक पुरानी पद्धतियों में बंधा रहे तो उसका महत्व कम हो जाएगा। शिक्षक दिवस हमें यह स्मरण कराता है कि शिक्षक केवल अध्यापक नहीं, बल्कि राष्ट्र का शिल्पकार और भविष्य दृष्टा है। हमें ऐसे शिक्षकों की आवश्यकता है जो ज्ञानवान हों, तकनीकी रूप से दक्ष हों, परंतु मानवीय मूल्यों से भी जुड़े रहें। यदि हम अपने शिक्षकों को आवश्यक प्रशिक्षण, संसाधन और सम्मान देंगे तो वे नई पीढ़ी को केवल योग्य पेशेवर ही नहीं, बल्कि जिम्मेदार नागरिक और संवेदनशील इंसान बना सकेंगे। यही आधुनिक शिक्षक और शिक्षा की वास्तविक उपलब्धि है। ब्रैंड हेनरी के इस कथन से ही शिक्षक दिवस पर डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी को सच्ची श्रद्धांजलि व सार्थकता होगी कि “एक अच्छा शिक्षक आशा को प्रेरित करता है, कल्पना को प्रज्वलित करता है और ज्ञान के प्रति प्रेम को जाग्रत करता है।

लेखकडा. महेश कुमार झा (प्राचार्य) पहलवान गुरुदीन प्रशिक्षण महाविद्यालय, पनारी, ललितपुर उत्तर प्रदेश 

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