ईश्वर के प्रति समर्पण, भाव परमात्मा का विज्ञान-आचार्य सुरेश जोशी

ईश्वर के प्रति समर्पण…आध्यात्मिक विज्ञान यह भी परमात्मा द्वारा वेदों द्वारा दिया गया

महरौनी (ललितपुर)। महर्षि दयानंद सरस्वती योग संस्थान आर्य समाज महरौनी के तत्वाधान में वैदिक धर्म के सही मर्म को युवा पीढ़ी से परिचित कराने के उद्देश्य से संयोजक आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य द्वारा पिछले एक वर्ष से आयोजित व्याख्यान माला में परमात्मा का विज्ञान विषय पर वैदिक विद्वान आचार्य सुरेश जोशी बाराबंकी ने कहा कि दो प्रकार का विज्ञान है।

ईश्वर के प्रति समर्पण, अपना व पराया हित और अहित ज्ञान नही रहा

एक भौतिक विज्ञान जो प्राकृतिक हैं तथा परमात्मा के द्वारा समस्त प्राणियों को प्राप्त हैं विशेषकर मानव जगत को इसकी चकाचौंध में इतना उलझा है कि उसको अपना व पराया हित और अहित ज्ञान नही रहा। परिणाम स्वरूप दुनिया की वैज्ञानिक होड़ से जड़ और चेतन दोनो प्रभावित हैं। दूसरा हैं आध्यात्मिक विज्ञान यह भी परमात्मा द्वारा वेदों द्वारा दिया गया। जिसमे श्रेष्ठ मानव शरीर मन बुद्धि और आत्मा। जिनके द्वारा सुख शांति और आनंद की प्राप्ति होती हैं, जो जीवात्मा का लक्ष्य हैं। अध्यात्म विद्या हमें उस ईश्वर से जोड़ते हैं। भौतिक विज्ञान प्रकृति में भटकाता हैं। अनेक मत वादियों ने दुनिया में ईश्वर को इतना उलझा दिया हैं, कि हम उसके सच्चे स्वरूप को ही भूल गए। ईश्वर के प्रति समर्पण.

श्रद्धा का अर्थ है सत्य को जानना

इसे लोगों को संत तुलसी दास जी में कहा चलाहीं कुपंथ वेद मग ठाडे, कपट कलेवर कालीमली भांडे आगे कहा अभी वर्ण अपने अपने कर्म से पातित होकर धर्म को भूल बैठे, वेद कहता हैं हे मनुष्यांे परमात्मा श्रद्धा से प्राप्त होता हैं। श्रद्धा का अर्थ है सत्य को जानना व मानना। हम इसे भूल के और हमने उसकी बस्तुये जो हमारी नही थीं उसी को देना प्रारंभ कर दिया।

ईश्वर के प्रति समर्पण, निष्काम कर्म, अर्थात ईश्वर को निष्काम भाव से भक्ति करें

महर्षि दयानंद जी सत्यार्थ प्रकाश में लिखते हैं परमात्मा पूर्ण ज्ञानी हैं क्योंकि ज्ञान उसको कहते हैं कि जिससे जो पदर्थ जिस प्रकार का हैं उसको वैसा ही जानना,और मानना। दूसरा है निष्काम कर्म, अर्थात ईश्वर को निष्काम भाव से भक्ति करें। तीसरा हैं समर्पण योग दर्शन में महर्षि पतंजलि कहते है तपा, स्वाध्याय, ईश्वर, प्राणिधान अदवा अर्थात तप शारीरिक जो पुरुषार्थ योग आसान आदि से किया जा है। वाणी का तप सत्य, प्रिय और मधुर बोलना, स्वाध्याय स्वयम का तथा वेद शात्र आदि का अध्ययन करना। समर्पण से तात्पर्य हैं जब हम कोई कार्य करे उसे ईश्वर को सूचित करें।

परमात्मा का ज्ञान हमें मोक्ष की प्राप्ति कराता है

कार्य के बीच में भी याद करो, हे प्रभु यह कार्य तुम्हारे द्वारा पूर्ण हुआ हैं। में तो माध्यम मात्र हूं, अतः यह तुम्हे स्वीकार्य हो, ए है समर्पण। परमात्मा का ज्ञान हमें मोक्ष की प्राप्ति कराता है। भजनोपदेशिका श्रीमती रुकमणी जोशी ने भजन भक्ति कर भगवान की काम तेरे जो आएगी, पाप भरी ये आत्मा ऊंचा उठती जायेगी। वेदांशी आर्या ने ओम जपो मेरे भाई ओम जपो मेरी बहिना, हिमानी शर्मा भोपाल ने स्वासों के तार तार में प्रभु प्यार को पिरो लो, शुभ कर्म करके पुण्य का जीवन में बीज बो लो सारस्वत अतिथि पंडित डॉक्टर देवदत्त शर्मा भारतीय सेना मेडिकल भोपाल ने कहा कि परमात्मा का ज्ञान हमें मोक्ष की प्राप्ति कराता हैं।

व्याखान माला में जयपाल सिंह बुंदेला, दुष्यंत लोधी सिमरधा, पुष्पेंद्र लोधी, मनोज कुमार तिवारी टाटा, अवध बिहारी तिवारी कल्याणपुरा, भवानी शंकर लोधी, उमेश चंद्र चौरसिया महाराजपुर, दीपक पाहवा बस्ती, कुमार सावनानी गुजरात, कांता गुजरात, सुमन लता सेन आर्या शिक्षिका, आराधना सिंह शिक्षिका सहित सम्पूर्ण विश्व से आर्य जन जुड़ रहे हैं। संचालन संयोजक आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य एवम आभार मुनि पुरुषोत्तम वानप्रस्थ ने जताया।


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