May 1, 2024
Maharishi Dayanand Saraswati Yoga

Maharishi Dayanand Saraswati Yoga: ओम की स्तुति उपासना से ही मानव कल्याण संभव-आचार्य सुरेश जोशी

Maharishi Dayanand Saraswati Yoga: महरौनी(ललितपुर)। महर्षि दयानंद सरस्वती योग संस्थान आर्य समाज महरौनी जिला ललितपुर के तत्वावधान में वैदिक धर्म के सही मर्म से युवा पीढ़ी को परिचित कराने के उद्देश्य से संयोजक आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य द्वारा पिछले एक वर्ष से आयोजित आर्यों के महाकुंभ व्याख्यान माला में 18जुलाई 2022 को ओंकार की स्तुति विषय पर आचार्य सुरेश जोशी बाराबंकी ने कहा ओम की महिमा का गान सभी के द्वारा होता रहा हैं पूर्ववर्ती ऋषियों ने ओम का विषद रूप से वर्णन किया हैं।

ईश्वर की पूजा चेतन और स्तुति सभी करते दिखते है चाहे पौराणिक भाई हो,या वैदिक विद्वान, इनकी पूजा पद्धति में भले ही अंतर हो। स्तुति जिसका अर्थ हैं जो पदार्थ जैसा हैं उसको उसी रूप में सत्य सत्य वर्णन करना। ओम अर्थात परमात्मा की स्तुति में ऋग्वेद 1-164-29 में कहा रिचौ अक्षेरे परमे अर्थात जिस व्यापक,अविनाशी, सबसे श्रेष्ठ परमेश्वर सब विद्वान और पृथ्वी सूर्य आदि सब लोक स्थित ऐसे उस ब्रह्म को,वेद को,जो नही जनता उसके पूजा कीर्तन आदि सब व्यर्थ हैं।

वेद के मार्ग का अनुसरण करें

Maharishi Dayanand Saraswati Yoga: वेद को जानने का तात्पर्य है सत्य न्याय परोपकार आदि का आचरण। रावण चारों वेदों का ज्ञानी कहा जाता हैं, ब्राह्मण था ऋषि कुल में जन्मा था,फिर भी निशाचर हुआ। राम क्षत्रिय कुल से एक वेद यजुर्वेद में निष्णात थे फिर भी सबके पूज्य महापुरुष कहलाए क्योंकि उन्होंने ओम, वेद के मार्ग का अनुसरण किया था। कठोपनिषद में कहा हैं जिस पद का सब वेद बार बार वर्णन करते हैं वह शब्द ओम हैं। मंडुक में कहा यह ओम परमेश्वर का प्रधान और मुख्य नाम हैं।

अर्थ की भावना दोनो होनी चाहिए

यजुर्वेद में कहा हे कर्म करने वाले जीव तू ओम का स्मरण कर। योग दर्शन में कहा है उस ओमकार का जप और उसके अर्थ की भावना दोनो होनी चाहिए। वही फिर कहा है ताश्य वाचक प्राणवा उस ईश्वर का वाचक ओमकार हैं। बौद्ध धर्म, जैन धर्म, खालसा पंथ, भागवत पुराण आदि में ओम से ही सभी मंत्रों का प्रारंभ करते हैं।कहने का तात्पर्य है ओम की स्तुति से ही हमारा कल्याण होना संभव हैं।

Maharishi Dayanand Saraswati Yoga: यह रहे मौजूद

प्रसिद्ध गीतकार संगीतकार ललित मोहन साहिनी मुंबई ने भजन उठ प्रातः समय मन मंदिर में, क्यों दीप जलाना भूल गए, जिस दाता ने भंडार भरे,उपकार उसी का भूल गए, दूसरा भजन के बोल प्रभु भक्ति में मन लगा लेते, इस चरणों में सर झुका देते, दर्श प्रभु जी हमें दिखा देते। व्याख्यान माला में जयपाल सिंह बुंदेला मिदरवाहा, वासुदेव सचिव बुंदेलखंड सेवा संस्थान,दिनेश उदेनिया योगाचार्य शिक्षक,मनोहर लाल शर्मा गुरुकुल चोटीपुरा, डॉक्टर यतींद्र कटारिया मंडी धनौरा, राम कुमार दुबे शिक्षक,अवध बिहारी तिवारी केंद्रीय शिक्षक कल्याणपुरा, अवधेश प्रताप सिंह बैंस, सुमन लता सेन आर्य शिक्षिका, आराधना सिंह शिक्षिका, विमलेश सिंह, विवेक सिंह आर्य गाजीपुर, कृष्णा सोनी इंदौर, रामावतार लोधी दरौनी, सौरभ कुमार शर्मा एडवोकेट प्रयागराज, कमला हंस, चंद्र शेखर शर्मा राजस्थान, शैलेश सविता ग्राम प्रधान अलीगढ़, शिवकुमार यादव बिजौर निवाड़ी, आदि जुड़ रहें हैं। संचालन संयोजक आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य एवम आभार मुनि पुरुषोत्तम वानप्रथ ने जताया।

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