नीलकण्डेश्वर मंदिर पाली | Neelkandeshwar Temple Lalitpur | नीलकण्डेश्वर त्रिमूर्ति मंदिर | भगवान शिव मंदिर |
Neelkandeshwar Temple Lalitpur Pali: (ललितपुर)। भगवान शिव जी के नाम को कौन नहीं जानता। जो साक्षात इस सृष्टि के रचयिता हैं। जिनके बनाए हर जीव जन्तु इस पृथ्वी पर दिव्य मान हैं। वैसे तो भगवान शिव जी के अनेकों रूप हैं, जैसे कैलाशनाथ, अमरनाथ, रूद्रप्रयाग, महाकालेश्वर, नीलकण्डेश्वर आदि हजारों नाम हैं भगवान शिव जी के। यह पृथ्वी का हर एक प्राणी जानता है कि अगर हम भगवान शिव जी की सच्चे मन से भक्ति करेंगे तो वह हमें उसका फल अवश्य देते हैं।
आज तक भगवान शिव जी की भक्ती करने वाला कभी भी खाली हाथ नहीं गया। भगवान ने हर उस भक्ति करने वाले प्राणी की मनोकामना पूर्ण की है, जिसने भगवान शिव जी की सच्चे मन से भक्ति की है। आज हम ऐसे दिव्य शिव जी के मंदिर की बात कर रहे हैं। जो हमारे इतिहास से भी जुड़ा है। कहते हैं कि भगवान नीलकण्डेश्वर मंदिर (Neelkandeshwar Temple) वह चमत्कारी मंदिर है कि यहां पर अगर कोई व्यक्ति गलत नीयत से आता है, तो उसे यहां के चमत्कार से बड़ी सजा मिलती है। आज हम ऐसे ही दिव्य शिव जी के नीलकण्डेश्वर मंदिर की बात कर रहे हैं। तो आइए जानते हैं यह दिव्य चमत्कारी मंदिर आखिर कहां है।
यूपी के छोटे से जनपद ललितपुर में है भगवान शिव जी का चमत्कारी मंदिर
Neelkandeshwar Temple Lalitpur Pali: आपको बता दें कि भगवान शिव जी का यह चमत्कारी मंदिर नीलकण्डेश्वर त्रिमूर्ति मंदिर उत्तर प्रदेश के अंतिम छोर पर बसे जनपद ललितपुर (Lalitpur Pali) के कस्बा पाली में यह मंदिर स्थित है। बता दें कि जनपद ललितपुर मुख्यालय से करीबन 30 किलोमीटर की दूरी पर विंध्याचल पर्वत श्रेणी पर यह दिव्य भगवान शिव जी का नीलकण्ठेश्वर मंदिर स्थित है। यह मंदिर अद्भुत एवं अद्वितीय है। भगवान शिव के इस मंदिर में दूर-दूर से भक्तगण यहां पर दर्शन करने आते हैं। इस मंदिर के बारे में ऐसा बताया जाता है कि यह मंदिर बहुत ही चमत्कारिक है। भक्तों का मानना है कि यहां पर जो नंदी मंदिर के बाहर विराजमान हैं, उनके कान में अपनी मनोकामना कह देने मात्र से ही वह पूरी हो जाती है। भगवान शिव का यह वास्तव में एक चमत्कारिक मंदिर है।
13 सौ साल पुराना है यह मंदिर
आपको बता दें कि भगवान नीलकण्डेश्वर के मंदिर का इतिहास करीब 13 सौ साल पुराना बताया जाता है, यह मंदिर चंदेल कालीन राजाओं द्वारा निर्मित कराया गया था, यह शिव मंदिर लाखों श्रृद्धालुओं की आस्था का बड़ा केन्द्र हैं। भगवान शिव जी के इस चमत्कारिक मंदिर में वैसे तो पूरे साल धार्मिक अनुष्ठान कार्य चलते रहते हैं, लेकिन शिवरात्रि पर इस मंदिर का नजारा कुछ अलग ही होता है। यह मंदिर अपनी कोख में हजारों पुरानी संस्कृति और सभ्यता को छुपाएं हुए हैं। इस दिव्य मंदिर तक पहुंचने के लिए हमें सीढ़ियों से गुजरना पड़ता है, तब जाकर भगवान नीलकण्डेश्वर मंदिर तक पहुंचा जा सकता है, मंदिर की सीढ़ियों से बहुत ही विहंगम दृश्य नीचे का दिखता है और सीढ़ियों के दोनांे तरफ प्राकृतिक झरना बहता है जो हमारे कानों को बहुत ही सुंदर प्राकृतिक ध्वनि देता है।
भगवान शिव के इस चमत्कारिक मंदिर में यह हुआ था चमत्कार
यह भी जानते हैं कि मुगल शासन काल में मंदिरों को तोड़ने का काम मुगल शासक कर रहे थे, उस समय का क्रूर शासक औरंगजेब था, जो मुगल शासन काल का तानाशाही व क्रूर शासन माना जाता था, इस शासन के द्वारा उस समय मंदिरों को तोड़ने का कार्य शुरू किया गया। देश के अनेकों मंदिरों को तोड़ दिया गया। मुगल शासक औरंगजेब की सेना इस मंदिर को तोड़ने के लिए एवं भगवान शिव जी की मूर्ति खंडित करने के लिए आयी थी। जब औरंगजेब के सैनिकों ने भगवान नीलकण्डेश्वर की प्रतिमा को खंडित करने के लिए तलवार से प्रहार किया। इससे प्रतिमा को चोट लगने वाले स्थान से दूध की धारा बहने लगी थी। यह अदभुत चमत्कार देख मुगल सेना भगवान शिव जी को मन की मन प्रणाम किया और वहां से चले गये थे।
भगवान नीलकण्डेश्वर मूर्ति की क्या है विशेषता
भगवान नीलकण्डेश्वर मंदिर प्रथमा के पृष्ठभाग पर कैलाश पर्वत को दर्शाया गया है। मयूर भगवान शिव डमरू बजाते व हलाहल पीते दर्शाया गई है। बीच में विराट स्वरूप सदाशिव निबंध मुद्रा में दाए हाथ में रुद्राक्ष की माला से जाप कर रहे कर रहे थे हैं और बाएं हाथ में श्रीफल लिए हैं। वाम भाग में मां पार्वती का श्रृंगार रस स्वरूप रूप है। जो अपने एक हाथ में त्रिशूल लिए हुए हैं। इस अद्भुत प्रतिमा के कुल 8 हाथ दर्शाये गये हैं। यहां हर वर्ष शिव रात्रि के दिन यहां पर श्रद्धालुओं का आवागमन बना रहता है। हजारों की संख्या में श्रद्धालु भोले के दरबार में माथा टेक कर अपने सफल मंगल जीवन की कामना करते हैं।
सावन सोमवार पर भक्तों का लगता है अदभुत तांता
भगवान शिव जी के नीलकण्डेश्वर मंदिर का इतिहास काफी पुराना है, भारत देश के चमत्कारिक मंदिरों में शिव जी यह मंदिर प्रसिद्ध है। आपको बता दें कि सावन सोमवार के समय इस मंदिर मंे भक्तों का अदभुत नजारा देखने को मिलता है, भक्तगण सावन सोमवार में दिन भर मानो इस मंदिर में जल का अभिषेक करने वाले भक्तों का तांता लगा रहता है।
कैसे पहुंचे भगवान नीलकण्डेश्वर दर्शन करने के लिए
भगवान नीलकण्डेश्वर मंदिर के लिए आप कैसे इस दिव्य चमत्कारिक स्थान तक पहुंचे, इसके अलए आप दिल्ली मुंबई रेल मार्ग से ललितपुर जंक्शन रेलवे स्टेशन आ सकते है। ललितपुर रेलवे स्टेशन पर सभी फास्ट सुपर फास्ट एवं पैसेंजर ट्रेनें रुकती हैं। यहां पर उतरकर यहां से किराए पर टैक्सी कार आदि लेकर नीलकंठेश्वर मंदिर पाली पहुंचा जा सकता है। यह मंदिर ललितपुर रेलवे स्टेशन से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसके अलावा जिला मुख्यालय से पाली कस्बे तक बसों की सुविधा भी उपलब्ध है। पाली बस स्टैंड पर उतर कर लगभग 4 किलोमीटर दूर यह नीलकंठेश्वर मंदिर बना हुआ है।
Neelkandeshwar Temple Lalitpur Pali: वायु मार्ग से कैसे पहुंचे मंदिर
भगवान नीलकण्डेश्वर मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तगण देश के किसी भी कोने से नजदीकी भोपाल एयरपोर्ट तक आ सकते हैं, दिल्ली क्षेत्र से आने वाले ग्वालियर एयरपोर्ट एवं खजुराहों एयरपोर्ट तक वायुमार्ग से आ सकते हैं, वहां समय समय पर टेªनें व बसें चलती हैं। जिससे इस दिव्य चमत्कारिक मंदिर तक भक्तगण पहुंच सकते हैं।
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