Ramcharit Manas – रामचरित मानस संसार का सरलतम एवं उच्चतम ग्रंथ

(ललितपुर)। Ramcharit Manas – तुवन मंदिर प्रांगण में साकेतवासी महामंडलेश्वर श्री बालकृष्ण दास जी महाराज की पुण्य स्मृति में आयोजित महामहोत्सव के अंतर्गत चतुर्थ दिवस रामकथा में व्यासपीठ पर आसीन जगदगुरू द्वाराचार्य मलूक पीठाधीश्वर डा. राजेंद्र दास देवाचार्य महाराज ने कहा कि माता-पिता की सेवा परम धर्म है।

श्रेष्ठ पुत्र वहीं है जो माता-पिता का रुख जानकर उनकी प्रसन्नता हेतु सेवा करें। उन्होंने कहा कि श्रेष्ठ पुत्र के तीन कार्य बताए गए हैं। जो पुत्र भय या लालच के कारण माता-पिता की सेवा करते हैं, वे अधम पुत्र हैं। जो माता-पिता की आज्ञा पालन नहीं करते, ऐसे पुत्र त्याग करने के योग्य हैं।

Ramcharit Manas – महाभारत के अनुशासन पर्व में भीष्म पितामह युधिष्ठिर से कहते हैं कि जो पुत्र पिता की सब विधि से सेवा करते हैं, उनके जीवन में स्वर्ग जैसे सुख प्राप्त होते हैं। जो पुत्र माता की श्रेष्ठ सेवा करते हैं, उन्हें धरती के सारे सुख स्वतरू ही मिल जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार, माता-पिता एवं गुरू की सेवा से चारों पुरूषार्थ प्राप्त होते हैं। पुत्र कितनी भी सेवा करें, मातृ-पितृ ऋण से मुक्त नहीं हो सकता है।

कथा क्रम को आगे बढ़ाते हुए महाराज जी ने कहा कि जब राम जी माता कैकयी व पिता दशरथ से मिलने गए तो पिता की मूर्च्छित अवस्था में कैकयी ने कहा कि राम तुम्हारे प्रेम एवं संकोच के कारण महाराज की यह दशा हुई है। दोनों वरदानों का वृतांत जानकर प्रभु राम जी ने कहा कि माता यह छोटी सी बात है। श्रीमद वाल्मीकि रामायण के अनुसार, राम जी के कैकयी माता से कहा कि आप मुझ पर संदेह न करें।

Ramcharit Manas – आज्ञापालन में कालकूट जहर पी जाऊंगा। जलती अग्रि में कूद जाऊंगा, पुत्र के लिए तो माता-पिता गुरू हैं। मैं अपने पिता के धर्म एवं सत्य की रक्षा के लिए आज ही वन जाऊंगा। भरत के लिए राज्य तो क्या में उसे सर्वस्व दे दूंगा। फिर प्रभु अपनी माता कौशल्या से अंजलि फैलाकर वन जाने की आज्ञा मांगते हैं। ममतामयी, स्नेहमयी मां कौशल्या ज्ञान स्वरूपा भी हैं। उन्होंने कहा कि यदि माता-पिता की आज्ञा है तो तुम्हारा वन जाना श्रेष्ठ है।

Ramcharit Manas – प्रभु राम रुहासें बनकर जानकी जी के पा गए और वन जाने की बात कही। प्रभु राम के निर्णय को सुनकर जानकी जी ने कहा कि यदि आज ही आप वन जा रहे हैं तो मैं आपसे विलग कैसे रह सकती हूं। मेरे सभी नाते तो आपके कारण ही हैं। नारी का सर्वस्व उसका पति होता है। मैं आपकी सेवा के लिए वन चलूंगी। प्रभु जान गए और उन्होंने अनुमति दी। इसी प्रकार प्रभु ने भैया लक्ष्मण जी को नीति ज्ञान की बातें समझाई पर वे नहीं माने तो प्रभु ने कहा कि माता सुमित्रा से आज्ञा ले आओ।

यहां सुमित्रा अंबा के लक्ष्मण से कहा कि आज से तुम्हारे पिताराम एवं माता जानकी जी हैं। तुम्हारे भाग्य से ही वे वन जा रहे हैं। वन में सब विधि उनकी सेवा करना, तब प्रभु राम, माता जानकी भैया लक्ष्मण बलकल धारण कर सुमंत जी के साथ अयोध्या से वन की ओर चलते हैं। नगरवासी रथ के साथ हो लेते हैं। मतसा तट पर प्रथम रात्रि विश्राम होता है।

यहां प्रभु अयोध्यावासियों को सोते छोडकर आगे निषादराज गुह के पास पहुंचते हैं। जहां रात्रि विश्राम में निषाद राज व लक्ष्मण भैया का ज्ञानपरक संवाद होता है। यही प्रभु व बरबस ही सुमंत जी को विदा करके गंगा तट पहुंचते हैं। जहां केवट प्रभु के पांव पखार कर गंगा पार करते हैं। प्रभु श्रीराम, माता जानकी एवं लक्ष्मण भैया भारद्वाज ऋषि के आश्रम में पहुंचते हैं एवं रात्रि विश्राम करते हैं।

कथा सत्र में सुप्रसिद्ध भजन गायक नंदू भैया पधारे जिन्होंने श्री हनुमान जी के भजन मां अंजनी के लाल थोड़ा ध्यान दीजिये, दे ज्ञान दीन दास का कल्याण कीजिये पर श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध किया। आज धर्मसभा में पीपाचार्य पीठ के पीठाधीश्वर श्री बलराम देवाचार्य महाराज पधारे। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि श्री रामचरित मानस संसार का सरलतम एवं उच्चतम ग्रंथ है, इसके आश्रम से जीवन धन्य हो जाता है।

मानव देह पाकर भी यदि मन को मनमोहन में नहीं लगाया तो जन्म-जन्मातरों की अशांति दूर नहीं होगी। संत राम नाम जपते हैं, उन्हें सब झुककर प्रणाम करते हैं। आप भी श्री राम नाम का जप शुरू करों। संसार आपको भी नमन करेगा। हरिनाम संकीर्तन धर्म का मूल है, जहां हरिनाम है, वहां सब कुछ है। महंत गंगादास महाराज ने कथा में पधारे संतों की अगवानी कर मंचासीन कराया।

मंचासीन महंतों में जगदगुरू पीपा द्वाराचार्य बलराम दास जी महाराज वृंदावन, महंत रामबालकदास, महंत श्यामसुंदरदस, सच्चिदानंद दास, राघवेंद्र दास, शिवराम दास, अशोक नारायण दास, रामलखन दास आदि विराजमान रहे।

दुख से निवृत्ति
महाराज जी ने कहा कि जीवन में दुख का कारण हमारे पूर्व कृत्य पाप हैं। हमारी स्वेच्छाचारिता हमें दुख देती है। धर्मनिष्ठ बनने से प्रारब्ध के दुख भी मिट जाते हैं। दुख से निवृत्ति तभी होगी, जब हम पूर्ण मनोयोग से भगवत शरण हो जाए।

Ramcharit Manas – शत्रुघन जी का धर्म श्रेष्ठतर धर्म

महाराज जी ने कहा कि प्रभु श्रीराम का धर्म सामान्य धर्म है और लक्ष्मण जी का धर्म विशेष धर्म है, जो पूर्णतया प्रभु श्री राम जी को समर्पित है लेकिन उनके धर्म में आग्रह है जबकि भरत भैया का धर्म विशेष प्रेम धर्म है। इसमें कोई आग्रह नहीं है। प्रभु की प्रसन्नता में अपनी प्रसन्नता मानना यही श्रेष्ठ प्रेम धर्म है। वहीं, शत्रुघन लाल का धर्म श्रेष्ठतर धर्म है, उनका प्रेम प्रभु श्रीराम जी व लक्ष्मण जी से तो है ही साथ ही भरत भैया से अधिक है। प्रभु भक्त के सुख में अपना सुख मानना। प्रभु के दुलारे संतों में सेवाधर्म रखना यही शत्रुघन लाल जी का श्रेष्ठतर धर्म है।

गोपी भाव के आचार्य श्री भरत जी

श्री कृष्ण भक्ति में प्यारे कंहैया के सुख में अपना सुख देखने वाली गोपियों का जो भाव है, उसी भाव के आचार्य प्रेममूर्ति भैया भरत जी हैं, जो प्रभु से विनय करते हैं कि जिस विधि आप प्रसन्न हों

आशीर्वाद कवच स्वरूप

जीवन में धर्म का आचरण नियमपूर्वक किया जाए। ऐसा धर्म आचरण हमारी सुरक्षा करता है क्योंकि धर्म कवच है। माता-पिता एवं गुरू का आशीर्वाद जीवन में कवच का काम करता है और हमारी रक्षा करता है।

समाधि स्थल पहुंचकर की पूजा अर्चना

तुवन मंदिर प्रांगण में साकेतवासी महामंडलेश्वर श्री बालकृष्ण दास जी महाराज की पुण्य स्मृति में आयोजित महामहोत्सव के अंतर्गत मंगलवार की सुबह साकेतवासी श्री बालकृष्ण दास जी महाराज की समाधि स्थल जो मोहल्ला तालाबपुरा स्थित है। मलूक पीठाधीश्वर डा. राजेंद्र दास ने समाधि स्थल पर पहुंचकर शास्त्रीय विधि के अनुसार पूजा की व अन्य संतों की समाधि की भी पूजा की।

यह रहे कथा में सम्मलित

कथा का श्रवण करने वालों में प्रमुख रूप से सदर विधायक रामरतन कुशवाहा, प्रदीप चौबे, डा. ओमप्रकाश शास्त्री, आदित्यनारायण बबेले, अजय तिवारी नीलू, प्रेस क्लब अध्यक्ष राजीव बबेले, रामेश्वर सड़ैया, वीरेंद्र सिंह वीके सरदार, नरेश शेखावत, धर्मेंद्र रावत, गिरीश पाठक सोनू, विवेक सड़ैया, राजेश दुबे, भाजपा जिलाध्यक्ष राजकुमार जैन, संजय डयोडिया, सुभाष जायसवाल, विलास पटैरिया, उदित रावत, प्रदीप खैरा, प्रदीप गुप्ता, शरद खैरा, जिला पंचायत अध्यक्ष कैलाश निरंजन,

पालिकाध्यक्ष रजनी साहू, हरीराम निरंजन, राजेश यादव, अनूप मोदी, चंद्रविनोद हुंडैत, सुधांशु शेखर हुंडैत, विभाकांत हुंडैत, ह्देश हुंडैत, गोपी डोडवानी, संजू श्रोतिय, कपिल डोडवानी, रमाकांत तिवारी, गंधर्व सिंह लोधी, सौरभ लोधी, अजय पटैरिया,

अशोक रावत, बब्बूराजा, अजय नायक, मनीष अग्रवाल, हाकिम सिंह, गोलू पुरोहित, आदित्य पुरोहित, बद्रीप्रसाद पाठक, मुकुट बिहारी उपाध्याय, राजीव सुड़ेले, सुबोध गोस्वामी, डा. राजकुमार जैन, रामकिशोर द्विवेदी, उमाशंकर विदुआ,

विष्णु अग्रवाल, गोविंद नारायण रावत, दुर्गाप्रसाद पाठक, कमलापति रिछारिया, देवेंद्र चतुर्वेदी, दिनेश गोस्वामी, चंद्रशेखर पंथ, डा. दीपक चौबे, भगवत नारायण वाजपेई, ओपी रिछारिया, वीरेंद्र शेखावत, अंतिम जैन, राहुल शुक्ला, सुनील सैनी, राजेश लिटौरिया, आशीष रावत, प्रशांत शुक्ला, अजय जैन साइकिल, भरत रिछारिया, मनीष दुबे, विक्रांत तोमर, कमलेश शास्त्री,

राहुल खिरिया, सतेंद्र सिसौदिया, डा प्रबल सक्सेना, नेपाल यादव, बृजेश चतुर्वेदी, कल्पनीत लोधी, गोलू चौबे, रामकुमार सोनी, अजय जैन साईकिल, बबलू पाठक, वीके तिवारी, शंकरदयाल भौड़ेले, मथुरा प्रसाद सोनी, सज्जन शर्मा,चंदे साहू, प्रताप नारायण गोस्वामी, राहुल चौबे, दीपक रावत, वीरेंद्र पुरोहित, नीरज मिश्रा, राजेश लिटौरिया, गौरव गौतम,

रविकांत तिवारी, पार्थ चौबे, नीरज शर्मा, देवेंद्र गुरू, राजेंद्र वाजपेई, बाबी राजा, भोलू रावत, श्रीकांत करौलिया, रामकुमार सोनी, दिवाकर शर्मा, आलोक श्रीवास्तव, जयशंकर प्रसाद द्विवेदी, भूपेंद्र तिवारी, चंद्रशेखर दुबे, मानू शर्मा, अंकुर रावत, शुभम कौशिक, नत्थू राठौर आदि हजारों श्रद्धालु उपस्थित रहे।


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