paramaatma hee duhkh ka, vinaash karata hai – परमात्मा ही दुःख का, विनाश करता है

paramaatma hee duhkh ka, vinaash karata hai

इसी क्रम में ओम भूरू भुवरू स्वरू तीनो महाव्याहृतियों द्वारा परमेश्वर की उपासना विषय पर वैदिक विद्वान प्रो. डॉ.अखिलेश शर्मा जलगांव महाराष्ट्र ने कहा कि भुवरू एवं स्वरू शब्द की व्याख्या करते हुए कहा कि परमेश्वर निश्चित रूप से दुखों का विनाश करता है संसार में अन्य लोग भी दुख का निवारण करते हैं परंतु वे संपूर्ण दुख का निवारण नहीं कर सकते हैं।

(paramaatma hee duhkh ka, vinaash karata hai) परमात्मा ही दुःख का विनाश करता है, संपूर्ण दुखों का निवारण करने वाला एकमात्र परमेश्वर है पर वह किनके दुख दूर करता है? यह सबसे बड़ा प्रश्न है आज करोड़ों लोग ईश्वर की भक्ति करते हैं परंतु फिर भी हमें करोड़ों लोग दुखी दिखाई देते हैं इसका तात्पर्य यही है कि या तो वे जिसे ईश्वर मान रहे हैं।

वह ईश्वर नहीं है या फिर वह ईश्वर की गलत उपासना कर रहे हैं। ईश्वर की सही ढंग से उपासना करने वाला निश्चित रूप से दुख से दूर होता है। यदि कोई प्यासा कहे मैं पानी पी रहा हूं फिर भी प्यास नहीं बुझ रही है तो या तो वह पानी नहीं पी रहा है या उसे कोई रोग है। ठीक इसी प्रकार ईश्वर के विषय में भी है आप उपासना भी कर रहे हैं और दुखी भी हैं ऐसा नहीं हो सकता है।

(paramaatma hee duhkh ka, vinaash karata hai) परमात्मा ही दुःख का विनाश करता है, अतः ईश्वर उपासना का सीधा साधा अर्थ है जो ईश्वर के बताए हुए मार्ग पर चलेगा ईश्वर की आज्ञा का पालन करेगा, अपनी बुद्धि को तीक्ष्ण करेगा, विद्या और अविद्या को जानेगा अपनी अविद्या को दूर करेगा और विद्या की प्राप्ति करेगा तो परमेश्वर के नियम के अनुसार जितनी जितनी अविद्या घटेगी उस उस मात्रा में उसके दुख दूर होते जाएंगे और वह एक दिन संपूर्ण दुखों से दूर हो जाएगा।

ईश्वर स्वयं सुख स्वरूप है

क्योंकि ईश्वर स्वयं सुख स्वरूप है और अपने उपासकों को सब सुखों की प्राप्ति कराता है। फिर वह व्यक्ति मान अपमान से परे हो जाता है पवित्र हो जाता है। संसार के व्यक्ति सांसारिक सुखों की प्राप्ति के लिए ईश्वर की भक्ति करते हैं कुछ अंशों में उनकी प्राप्ति भी होती है परंतु अंत में उनसे भी दुख ही मिलता है। अतः जिज्ञासु मोक्ष को प्राप्त करने की इच्छा रखने वाला कभी भी सांसारिक कामनाओं की इच्छा ईश्वर से नहीं करता है वह तो ईश्वर से ईश्वर की इच्छा करता है अतः सदा सुखी रहता है। प्रो.डॉ. निष्ठा विद्यालंकार राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान लखनऊ ने कहा कि हम सभी को सुबह शाम संध्या वंदन अवश्य करना चाहिए तभी हम आर्य कहलाने के सच्चे अधिकारी हैं।

व्याख्यान माला में इन्होंने किया प्रतिभाग

(paramaatma hee duhkh ka, vinaash karata hai) व्याख्यान माला में अवनीश मैत्री वेदकला संवर्धन राजस्थान, अरविंद तिवारी शिक्षक, पवन वर्मा दिल्ली, वसुंधरा सेन, सोहन लाल निरंजन, सुमन लता सेन शिक्षिका, आराधना सिंह शिक्षिका, रामावतार लोधी प्रबंधक दरौनी, चंद्रकांता आर्या, अनिल नरूला, प्रो. डॉ.वेदप्रकाश शर्मा बरेली, विमलेश सिंह शिक्षक, समर बहादुर शर्मा प्रयागराज, यशवंत रघुवंशी, आशा सरस्वती, रामवीर आर्य प्रभाकर, प्रेम सचदेवा, एसके मल्होत्रा, प्रो.अखिलेश सिंह यादव मैनपुरी, सुशील आर्य लोधी रांची, कमला हंस आदि आर्य जन जुड़ रहे हैं। संचालन संयोजक आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य एवं आभार मुनि पुरुषोत्तम वानप्रस्थ ने जताया।


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